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सोशल मीडिया पर सुसाइड से जुड़े विचार और भावनाए शेयर करने वाले लोगों की मदद करना सीखें ।
आपको किसी के ऑनलाइन पोस््ट््स देखकर यह चिंता हो सकती है कि कहीं उनके मन मेें सुसाइड के विचार और भावनाएं तो नहीं है, और आप शायद न जानते हों कि उनकी मदद कैसे की जाए। किसी से ऑनलाइन संपर््क करना, सहायता की एक महत्वपूर््ण शुरुआत हो सकती है।
आप उनसे प्राइवेट मेें संपर््क करेें (DM/PM)
उनकी पोस्ट का उल्लेख करेें और यह बताएं कि आपको उनकी चिंता क््योों है। उनसे सीधे पूछेें कि क्या वे सुसाइड के बारे मेें सोच रहे हैैं। उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैैं:
“मैैं सिर्फ़ पूछना चाहता/चाहती थी क््योोंकि आपने पोस्ट किया था कि ..............., और मुझे आपकी चिंता हो रही है। हो सकता है आप शायद सुसाइड के बारे मेें सोच रहे हैैं, क्या यह सच है?”
“क्या आप इसके बारे मेें बात करना चाहते हैैं?” “हेलो .............! आपकी पोस्ट ने मुझे सच मेें चिंतित कर दिया। आप अगर चाहेें तो मैैं आपकी मदद करना चाहूूंगा/चाहूूंगी।”
के लिए प्रेरित करेें या आप खुद उनकी तरफ़ से इमरजेेंसी सर्विसेज़ को कॉल करेें।
उनसे अपने किसी विश्वसनीय परिवार के सदस्य/ दोस्त से संपर््क करने के लिए कहेें। यदि हो सके तो उनके सोशल नेटवर््क , या वो जिनके साथ रहते हैैं, उनमेें से किसी को आप कांटेक्ट करेें।
यदि संभव हो, तो सहायता के आने तक आप उन्हहें बातचीत मेें व्यस्त रखेें।
उनसे पूछेें कि क्या वे इस बारे मेें बात करना चाहते हैैं। शायद वो कभी आपकी मदद के लिए मना कर देें, इसलिए यह अच्छा होगा कि उन पर दबाव न डाला जाए। उन्हहें बताइए कि अगर ज़रूरत पड़़े, तब आप उनके लिए मौजूद हैैं और आराम से, जब वे चाहेें, तब आपसे बात कर सकते हैैं।
उनसे पूछेें कि क्या वे सहायता सेवाओं की मदद लेना चाहते हैैं (जैसे कि, क्राइसिस हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, ऑनलाइन काउंसलिंग, इत्यादि)। यदि वो मान जाते हैैं, तब उचित जानकारी उपलब्ध कराएं।
बाद मेें मैसेज करके या फ़़ोन कॉल द्वारा पूछताछ करेें और देखेें कि वे सुरक्षित हैैं या नहीं।
इस परिस्थिति मेें होना तकलीफ़ दे सकता है, और आप यह महसूस कर सकते हैैं कि इस व्यक्ति की जान बचाने की ज़़िम्मेदारी आपकी है। यह एक बहुत ही स्वाभाविक भावना है, इस पर प्रतिक्रिया करने के 2 तरीके हो सकते हैैं।आपको डर, बेचैनी, और असहाय होने की भावना आ सकती है। ऐसे मेें अपने आप को स्थिर रखना मददगार साबित होगा, जिससे आप खुद को संभाल सकते हैैं और दूसरे व्यक्ति की तकलीफ़ मेें उनके लिए पूरी तरह उपस्थित भी रह सकते हैैं। साथ ही, इस बात को ध्यान मेें रखना भी ज़रूरी है कि आप किसी व्यक्ति के निर््णय के लिए ज़़िम्मेदार नहीं हैैं।
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