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बीते सालों में, बीता हर एक पल मेरा अपना है।
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे, कि वो सब सपना है।

मुझको ही क्यों चुना वक़्त ने, हर पल मैंने दोहराया,
मैंने मुझपर मेरा अपना सारा ज़ोर आजमाया।
और कहा मैं जीतूंगी, मुझको हर ताकत से लड़ना है,
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे कि वो सब सपना है।

गिरना, उठना, फिर गिरकर उठना कितना दुखदाई था,
चाहे कोई न कोई दोस्त हरदम मेरा सहाई था।
लेकिन वक़्त से आँख मिलाकर केवल मुझको चलना है,
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे कि वो सब सपना है।

गहन सोच में खुद को मैंने जब भी एकाकी पाया,
अंतरद्वंद्व के कुरुक्षेत्र में मेरा कृष्ण सारथी बन आया।
सर पर रखकर हाथ वो बोले मुझको अर्जुन बनना है,
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे कि वो सब सपना है।

बीता समय अब केवल एक संख्या ही कहलाएगा,
जीवन मेरा उस हिस्से में हर पल साहस पाएगा।
मेरे अपनों का हाथ जोड़कर धन्यवाद मुझको कहना है,
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे कि वो सब सपना है।

बीते सालों में, बीता हर एक पल मेरा अपना है।
पर आज बीच अपनों के यूँ लगे कि वो सब सपना है।

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